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Friday, 1 November 2013

हरि आधार

रूप  सम्भव तभी  जब  तक हरि आधार
तुच्छ, हो या महिम हरि का सब व्यापार 

भार

भार वहन  करते हैं माधव
                       हलके रहते भक्त

न "तू" हो न "मैं" या "वह"
                         हों हरि में आसक्त 

रास

योगी रास रचातें पल पल
                   दुश्मन उनके रोयें
हरि के चाकर हरि रस पीके 

                     हर पल खुश होयें

रूप विराट

चाकर राधा माधव के - सृष्टि के सम्राट
रहें प्रेम से, निर्भय,देखें उनका रूप विराट