आओ कान्हा द्वार
कान्हा ने जीवन
दिया, दिया गृहस्थ
संसार ,
कैसे जाएँ
वृन्दावन कृष्ण ही आयें
द्वार ! ,
March 30, 2011
ईश्वर आनंद
कंद हैं
प्रकृति गुणों की खान
उनकी करुना से मिले
हरी भक्ति और
ज्ञान !
25 May 2012
अंतर्मन की दृष्टि
से, सृष्टि मय हैं
आप ....
कैसे देखें लोक फिर
आलोकित जब आप .. , 11 May 2012
तुमने ही जीवन
दिया तुमसे ही यह देह
..
प्रति क्षण तुमको
समर्पित,सत्य तुम्हारा
नेह. , 10 May 2012
जो मर सका
मेरे लिए वह
तो मुझे ही
पा गया
मिट गया
अब बुलबुला सिन्धु
में ही समां
गया 9 May 2012
भूलोक में
देह रह रही, गोलोकी
हैं प्राण ..
श्वांस श्वांस में राधिके
दें जो जग
से त्राण! , 9 May 2012
राधा मेरा प्राण
है राधा ही
आधार,
राधा के कारण
ही है माधव
साकार !3.5.12
बंजर धरती उर
की जब तक
हरी न आये
बरसे हरी की
कृपा सरस उपवन
लहरायें3.5.12
न मैं गुरु
न शिष्य हूँ एक
नेह की रेख
करती हरी में
ही रमण राह उन्ही
की देख
3.5.12
विश्वरूपी कृष्ण हो तुम
विश्व के आधार
कर दिया सर्वस्व
अर्पित अब करो
स्वीकार. 3.5.12
वंशी की धुन
बाजती प्रकृति के
अनुरूप
कहलाओ चाहे कोई
नदिया ,
धरती ,
धूप19.4.12
सतरंगी रे अपनी
ओढ़नी ..कान्हा हैं रंगरेज
..
चमके हिये में
म्हारे माधो रान्खू उन्हें
सहेज ..19.4.12
नारी नर दो
बिम्ब हैं दोनों
सृजन आधार
इश्वर के ही
अंश हैं यह
ही सत्य विचार
3.4.12
माला के मनके
हम सारे ..सूत्र हमारे बनवारी
फूलों से हम
सारे महकें..जग
है प्रभु की
फुलवारी. , 5 March 2012
न तुम हो
न मैं कहीं
..वंशी के सब
छिद्र ..
स्वर बाजें घनश्याम के
कहलाये हम मित्र
.. , 5 March 2012
आहुति हूँ यग्य
..की.. हर सांस
सामिग्री का कण
विभु में समाहित
हो रही शनैः शनैः
..क्षण.. क्षण ! , 5 March 2012
मेरे भक्तों को सदा
जग देता विषपान
विष पीकर भी जो हँसे
उसको सच्चा ज्ञान !
कुटिल व्यूहों,व्यंगबानों के लगें
जब डंक,
चेतना
के विहग ने
तब ही उगाये
पंख . 20.5.11
योग से जन्मे हैं हम है योग ही में ज्ञान
;
योग सच्ची साधना है योग ही है ध्यान
--------------12.5.11
जिसके मात्र स्मरण से
ही हर संताप
बिसर जाता है
वह तो केवल
एक कृष्ण हैं
!
जिसकी स्वप्न झलक पाते
ही
हर आकर्षण बिखर जाता
है
जो सबके दुःख
का साथी है
सबका पालक, जनक, संहर्ता
वह तो केवल
एक कृष्ण हैं
.
साक्षी सबके पाप
पुण्य का ,
न्यायमूर्ति
सृष्टि का भरता
,
वह अवतार प्रेम का
मधु का ,
अनघ,
शोक मोह
का हरता
वह तो केवल
एक कृष्ण हैं5-4-09

अनजान हूँ मैं
साधना और साधन
से, मुग्ध हूँ
अभिभूत हूँ संतो
के समागम से
! , 12 May 2011
प्राण से बढकर
नहीं कुछ प्राण
ही अविराम,
प्राण की पूजा
करो करके प्राणायाम
!12.5.11
मैं हूँ न
!
मत हो आहत,
मत हो उदास
!
तुम अंश मेरे
मैं हूँ अंशी
.
विस्मृत कर
पल भर को जग को
,
लो सुनो मधुर मेरी वंशी
!13.2.11
मृत्युलोक में मृत्यु
सुनिश्चित व्यक्ति ,वस्तु हो
या सम्बन्ध .
आते हैं
सब लौट लौट
कर पूरे करने
ऋण -अनुबंध .7.3.11
यामिनी !
मैं शांत यामिनी
हूँ ,तुम हो
मयंक मेरे !
घनघोर कालिमा हूँ ,अविरक्त
श्यामली हूँ !
!तुम ज्योति -पुंज मेरे
!
तुम हो मयंक
मेरे !1982-3
तुम मधु हो
मैं मधुकर माधव,तुम सागर
मैं एक लहर!
मुझ में तुम
हो तुम में मैं
हूँ ,सपने सा
है खेल मगर
हम दोनों तो एक
सदा हैं,कोई
आये कोई जाए
.
जाने कितने चेहरे आय,
कोई सताए कोई लुभाए.
सारे झूठे !सारे छूटे!
एक बस तू ही
साथ निभाये .
तुम मधु हो
मैं मधुकर माधव
तुम सागा मैं
एक लहर
तुम सूरज मैं
एक किरण हूँ
तुम प्रकाश मैं
तेज प्रखर
तेरा मेरा नाता
एसा ज्यूँ हैं
दिन में आठ
प्रहर,
तुम मधु हो
मैं मधुकर माधव,
तुम सागर
मैं एक लहर!------------
तुम दिव्य किरण हो
मेरे सूने आँगन
की
तुम चन्द्र
किरण मेरे लहराते
सागर की
तुम
मधुकण हो मेरे
निर्गंध सुमन के
तुम अमृत कण
मेरे मेरी इस
रीति गागर के
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प्राण मेरे !
खोजती हूँ मैं तुझे
ही.आज भी
मैं हूँ अपरिचित
विश्व से इस!
तू कहाँ जा
खो गया है
दिव्य मेरे?
आज भी मैं
तो तुझे ही
खोजती हूँ प्राण
मेरे !
ज्ञात मुझको भाव तेरा
,'मैं'' स्वयं अज्ञात हूँ
.
सत्य है तू
एक मेरा , मैं
तो मिथ्या -गात
हूँ--------------------------