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Thursday, 29 November 2012

Friday, 18 May 2012
मिटटी मैं हूँ ,स्व भी मैं हूँ ..
प्रकृति मैं .. पुरुष भी मैं हूँ ..
रहा अकेला युगों युगों तक,
उर ने चाहा खेल करूं कुछ ..
रच डाले ब्रहमांड अनेकों .
मानव, दानव, जल-चर, नभचर ..
खेलूं सब से जब तक चाहूँ .
नैन मूंद सब मुझ में पाऊँ ..

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