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Monday, 18 March 2013





बरबस खिंच जाते प्राण तुम्हारी दृष्टि से उन्मादित

 तन -मन विस्मृत अस्तित्व शेष बस हो जाता आह्लादित

मारुत से उड़ जाते उर में भर सुगंध सुमनों की ..!

कभी लहर  सा खेले जीवन गोदी में सागर की

 मृत्यु हो तुम या हो जीवन ,नहीं समझ में आया

कभी ह्रदय में बसे प्राण बन,कभी छीन ली काया!-----------------

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