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Friday, 27 December 2013

रास


 कृष्ण कृपा जब बरसती
                    सृष्टि रचाती रास
कृष्ण शरण में हम रहें
                       केवल इतनी आस

Friday, 1 November 2013

हरि आधार

रूप  सम्भव तभी  जब  तक हरि आधार
तुच्छ, हो या महिम हरि का सब व्यापार 

भार

भार वहन  करते हैं माधव
                       हलके रहते भक्त

न "तू" हो न "मैं" या "वह"
                         हों हरि में आसक्त 

रास

योगी रास रचातें पल पल
                   दुश्मन उनके रोयें
हरि के चाकर हरि रस पीके 

                     हर पल खुश होयें

रूप विराट

चाकर राधा माधव के - सृष्टि के सम्राट
रहें प्रेम से, निर्भय,देखें उनका रूप विराट 

Wednesday, 4 September 2013

कृपा है

मन में मंदिर जग में काम ,
                  हरि की सेवा में विश्राम


कृपा है बनवारी की..
              कविता उनका खेल
रचते हैं ब्रहमांड अनंत
                 अपना  उनसे मेल

Tuesday, 27 August 2013

हरी के संग

शरद पूनम की रात है 
              राधा माधव संग
                               नाचें मधुमय प्रेममय 
                                              भक्त हरी के संग !

रास रचाते हैं योगी

रास नहीं बदनामी कोई.. 
             रास रचाते हैं योगी.. 
                          कृष्ण परम योगी जो ठहरे 
                                         न समझें उनको भोगी ....

जग के सपने ...

जितनी गोपी कृष्ण भी उतने
                             जितने जीव ब्रह्म भी उतने
                                             सृष्टि कहाँ है ब्रह्म बिना .... 
                                                             .हैं हरी देखते जग के सपने ...

जग ही उनका धाम

जिस के मन राधाकृष्ण
                   उसको किस से काम ?  
                                     धारक पालक तो वही
                                                     जग ही उनका धाम

Saturday, 3 August 2013

माधव मेरे !

22 July 2013 at 14:03
मुक्त करो, जग की कारा से, माधव मेरे !

जनम जनम तक भटके, अटके, धोखे खाते !

रह जाते हर  बार अधूरे ,फिर पछताते !

नैन मूंद बस ध्यायूं तुमको केशव मेरे !

पिता तुम्ही,माता  मेरी,गुरु के गुरु मेरे !

करो अनुग्रह अब तो, कृपा मेघ बन जाओ !
एक करो अपने से मुझ को न तरसाओ !

Wednesday, 31 July 2013

प्रेमियों के प्राण...

कृष्ण सा प्रेमी नहीं, धरती ने उपजा

                कृष्ण सा माधुर्य न, सृष्टि में बरसा

कृष्ण सृष्टि के प्रणेता , प्रेमियों के प्राण...

                    देह छोडी, बसे ह्रदय में, देने सब को त्राण..!

Monday, 18 March 2013

धुन

वंशी की धुन बाजती 
                प्रकृति के अनुरूप
कहलाओ चाहे कोई 
               नदिया ,धरती ,धूप19.4.12




बरबस खिंच जाते प्राण तुम्हारी दृष्टि से उन्मादित

 तन -मन विस्मृत अस्तित्व शेष बस हो जाता आह्लादित

मारुत से उड़ जाते उर में भर सुगंध सुमनों की ..!

कभी लहर  सा खेले जीवन गोदी में सागर की

 मृत्यु हो तुम या हो जीवन ,नहीं समझ में आया

कभी ह्रदय में बसे प्राण बन,कभी छीन ली काया!-----------------





योगेश्वर ने है दिया शोक निवारक योग .
सृष्टि के है मूल में आधेय- आधार .
प्रकृति के पीछे पुरुष. पुरुष -प्रकृति आधार
फल आधारित पुष्प पर, पल्लव पुष्प आधार .
पल्लव आश्रित शाख पर,तना शाख आधार.
मूल  आधार स्कंध की,बीज वृक्ष आधार .
बीज आधारित भूमि पर . भूमि परिक्रमा बाध्य .
करती पथ पर ही गमन ,सूर्य देव आराध्य .
ढूध-धवलता पृथक, अग्नि से ताप
जल -रस;प्रकृति -गंधमय,वायु सहित है भाप.
राधा -माधव एक हैं एक तत्व दो नाम .
शासक शासिता प्रेम बहे निष्काम .
आत्मा शाश्वत तत्व है ,रूप व्यक्त आधार.
नारी -नर दो बिम्ब हैं दोनों सृजन आधार .20.6.10






छिप छिप कर मिलते हो ,
 मिल कर छिप जाते हो,
एक झलक दिखला  कर
ओझल   हो   जाते   हो .. 
कब तक नाच नचाओगे  
रास बिहारी ? 
कुछ तो रहम करो उन पर
जो शरण तुम्हारी.

3.4.11




देह राधा, आत्मा कान्हा हुए , प्रेम के सैलाब में पागल हुए !
कौन जीवन ?कौन मृत्यु? भेद छूटे,वेश छूटे एकानंद हुए! ,


17 May 2011







मैं क्यूँ बोलूँ ?
कहाँ अब भ्रान्ति कोई?
निशब्द होता है अहसास ,
जगे जब आत्मा सोई !23.4.11
प्राण तुम हो ज्ञान हो तुम मृत्यु तुम विश्राम  भी  तुम
तुम ही तुम हो श्याम श्वेता कृष्ण तुम हो राम भी तुम
4 May 2012





मौन भाषा है ह्रदय की,
   मौन में.... विश्राम..
     मौन ही ...आनंद है
        मौन में .....हैं राम !

12 May 2011

मैं माधव! मैं कृष्ण मुरारी !मैं ही जीवन! मैं ही वारि ! 
मुझ से विलग नहीं कुछ भी, मैं तो हूँ आत्मा तुम्हारी ! , 17 May 2011

Thursday, 14 February 2013

साक्षी सृष्टि चक्र का
मुझ से रहित न कोई
जाओगे छिप कर कहाँ
मुझ बिन कुछ न होई !